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त्रिरा दि॒वः स॑वित॒र्वार्या॑णि दि॒वेदि॑व॒ आ सु॑व॒ त्रिर्नो॒ अह्नः॑। त्रि॒धातु॑ रा॒य आ सु॑वा॒ वसू॑नि॒ भग॑ त्रातर्धिषणे सा॒तये॑ धाः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

trir ā divaḥ savitar vāryāṇi dive-diva ā suva trir no ahnaḥ | tridhātu rāya ā suvā vasūni bhaga trātar dhiṣaṇe sātaye dhāḥ ||

पद पाठ

त्रिः। आ। दि॒वः। स॒वि॒तः॒। वार्या॑णि। दि॒वेऽदि॑वे। आ। सु॒व॒। त्रिः। नः॒। अह्नः॑। त्रि॒ऽधातु॑। रा॒यः। आ। सु॒व॒। वसू॑नि भग॑। त्रा॒तः॒। धि॒ष॒णे॒। सा॒तये॑। धाः॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:56» मन्त्र:6 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:1» मन्त्र:6 | मण्डल:3» अनुवाक:5» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ईश्वर की प्रार्थना के साथ जगद्विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सवितः) ऐश्वर्य के देनेवाले आप (दिवेदिवे) प्रतिदिन (नः) हम लोगों के लिये (दिवः) कामना करने योग्य क्रियाओं को (वार्याणि) ग्रहण करने योग्य ऐश्वर्यों को (त्रिः) तीन बार (आसुव) उत्पन्न करो हे (भग) अत्यन्त भजने योग्य (अह्नः) दिन के मध्य में (रायः) धनों को (त्रिः) तीन बार (आसुव) उत्पन्न करो और (त्रातः) हे रक्षा करनेवाले (सातये) उत्तम प्रकार विभाग के लिये (त्रिधातु) सुवर्ण और चाँदी आदि धातु जिनमें ऐसे (वसूनि) धनों और (धिषणे) अन्तरिक्ष और पृथिवी को (आ, धाः) सब प्रकार धारण करो ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे जगदीश्वर ! आप कृपा से हम लोगों को धर्म से पुरुषार्थयुक्त करके प्रतिदिन ऐश्वर्य्य प्राप्त कराओ और निरन्तर रक्षा करके सबके सुख के लिये विभागों को कराओ ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेश्वरप्रार्थनया जगद्विषयमाह।

अन्वय:

हे सवितस्त्वं दिवेदिवे नोऽस्मभ्यं दिवो वार्याणि त्रिरासुव। हे भग अह्नो मध्ये रायस्त्रिरासुव। हे त्रातस्सातये त्रिधातु वसूनि धिषणे आ धाः ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्रिः) त्रिवारम् (आ) समन्तात् (दिवः) कमनीयाः (सवितः) ऐश्वर्यप्रद (वार्याणि) वरितुं योग्यान्यैश्वर्याणि (दिवेदिवे) प्रतिदिनम् (आ) (सुव) जनय (त्रिः) त्रिवारम् (नः) अस्मभ्यम् (अह्नः) दिवसस्य मध्ये (त्रिधातु) त्रीणि सुवर्णरजताऽयसादयो धातवो येषु तानि (रायः) (आ) (सुवा) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (वसूनि) धनानि (भग) भजनीयतम (त्रातः) रक्षक (धिषणे) द्यावापृथिव्यौ (सातये) संविभागाय (धाः) धेहि ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे जगदीश्वर भवान् कृपयाऽस्मान् धर्मेण पुरुषार्थयित्वा प्रतिदिनमैश्वर्य्यं प्रापय सततं रक्षित्वा सर्वेषां सुखाय विभागान् कारय ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे जगदीश्वरा! तू कृपा करून आम्हाला धर्माने पुरुषार्थयुक्त करून प्रत्येक दिवशी ऐश्वर्य प्राप्त करून दे व निरंतर रक्षण करून सर्वांच्या सुखासाठी त्याचे विभाग कर. ॥ ६ ॥